गुरुवार, जुलाई 01, 2010

नियति !






यह चलती रोज मचलती है,
द्रुत गति है इसकी तेज बहुत ,
हर -पल यह रूप बदलती है!
कभी भर देती दामन तेरा ,
कभी हर-पल तुझको छलती है!
धरती पर मानव कि देखो ,
होती इससे गति-दुर्गति है,
प्रारब्ध,भाग्य विधि रेख कहो,
बस इसी का नाम तो
नियति है !

-
उमेश

{जीवन में होने वाले अच्छे-बुरे अनुभवों ,चढाव-उतराव आदि से हम नियति को भी महसूस करते हैं! सबके जीवन में इसका एक अहम् रोल है ,थोड़े से अंतर से ज़ब कभी कोई काम बनता या बिगड़ता है तो नियति वहां अस्तित्व में आ जाती है ! यह नियति का ही कमल है कि भगवन राम होने के बाद भी हमें १४ साल जंगल में बिताना होता है !}

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