
-उमेश पाठक
आत्म्विशस से लबरेज कुछ पंक्तियाँ देखिये-
पश्चिमी दार्शनिक हईड़ेगर ने कहा था - मनुष्य इस संसार में एक फेंकी हुयी सत्ता है। कभी -कभी जिंदगी के थपेड़ों को महसूस करने के बाद उसकी ये बात सच प्रतीत होती है!कभी हम इतने मजबूर होतें हैं कि जो निर्णय नियति लेती है उसे स्वीकार करने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई चारा नहीं होता !जीवन में हर कोई बड़ा बनना चाहता है मगर बड़ा बनाना आसान तो नहीं !बड़ा बनने के लिए बड़ी सोच के साथ आत्मविश्वास का होना ज़रूरी है ! स्वाभिमान ,कठिन परिश्रम और लम्बे समय तक संघर्ष करने की दृढ ईक्षा ही अम्बिशन को पूरा करने में सहायता करती है !जब जीवन का यह सार या सूत्र समझ में आ जाता है तो लक्ष्य तक पहुचना आसान हो जाता है अन्यथा हम आने वाली समस्याओं में ही उलझे रहते हैं !
ऐसी ही एक आत्मविश्वासी लड़की कि संघर्ष गाथा है उपन्यास- मुझे चाँद चाहिए ! सुरेन्द्र वर्मा का यह उपन्यास बड़े कथानक का है और इसमें बहुत सारे पात्र हैं लेकिन मुख्य पात्र का संघर्ष और आत्मविश्वास प्रेरक है !कथा की मुख्य पात्र सिलबिल उर्फ़ वर्षा वशिष्ठ हमारे आस-पास कि ही लगती है और उसके सुख-दुःख अपने लगते हैं ! पूरा उपन्यास थियेटर और सिनेमा कि दुनिया पार आधारित है दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ) के बारे में इतनी विषद और व्यापक जानकारी हो जाती है कि आप यह महसूस करने लगते हैं कि मै भी इसमें पढ़ चुका/चुकी हूं !"...अचानक मुझमें असंभव के लिए आकांक्षा जागी। अपना यह संसार काफी असहनीय है, इसलिए मुझे चंद्रमा, या खुशी चाहिए-कुछ ऐसा, जो वस्तुतः पागलपन-सा जान पड़े। मैं असंभव का संधान कर रहा हूँ...देखो, तर्क कहाँ ले जाता है-शक्ति अपनी सर्वोच्च सीमा तक, इच्छाशक्ति अपने अंतर छोर तक ! शक्ति तब तक संपूर्ण नहीं होती, जब तक अपनी काली नियति के सामने आत्मसमर्पण न कर दिया जाये। नहीं, अब वापसी नहीं हो सकती। मुझे आगे बढ़ते ही जाना है... .."
ये उपन्यास शाहजहाँपुर की एक आम निम्नमध्य वर्गीय किशोरी सिलबिल के अपने छोटे शहर के दकियानूसी परिवेश से निकल कर दिल्ली के रंगमंच में अभिनय सीखने और फिर मुंबई के सिने जगत में एक काबिल और स्थापित अभिनेत्री बनने की संघर्ष गाथा है।अपनी पूरी जीवन यात्रा में वह भारत के उस निम्न मध्य वर्ग की लड़की का प्रतिनिधित्व करती है जो भारत के अधिकांश छोटे कस्बों के घरों में बसती है !
सिलबिल के चरित्र के कई आयाम हैं। सिलबिल अपने जीवन की नियति से दुखी है। अपने परिवेश से निकलने की छटपटाहट है उसमें। नहीं तो वो घरवालों से बिना पूछे अपना नाम यशोदा शर्मा से वर्षा वशिष्ठ क्यूँ करवाती? अपनी शिक्षिका की मदद से रंगमंच से जुड़ने वाली सिलबिल, अपने पहले मंचन में सफलता का स्वाद चख इसे ही अपनी मुक्ति का मार्ग मान लेती है और अपनी सारी शक्ति अपनी अभिनय कला को और परिपक्व और परिमार्जित करने में लगा देती है। यही किसी के भी जीवन की सफलता का मूल मन्त्र भी है !
जीवन के नए अनुभवों से गुजरने में वर्षा वशिष्ठ को कोई हिचकिचाहट नहीं, चाहे वो उसके बचपन और किशोरावस्था के परिवेश और मूल्यों से कितना अलग क्यूँ ना हो।ये नए अनुभव ही तो व्यक्ति को परिपक्वता प्रदान करतें हैं और आत्मविश्वास भी बाधा जातें हैं ! बल्कि इनका आनंद लेने की एक उत्कंठा है उसमें। पर उसके व्यक्तित्व की विशेषता ही यही है कि ये अनुभव उसे अपने अंतिम लक्ष्य से कभी नहीं डिगा पाते।जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ,मानवीय संघर्ष कि गाथा को जानने के लिए इस उपन्यास को एक बार अवश्य पढना चाहिए ! नाटक ,थियेटर और कला से जुड़े लोगों के लिए तो यह बहुत ही सहायक पुस्तक है !
sundar aalekh
जवाब देंहटाएंaap logon ka aabhar.
जवाब देंहटाएंkya sandar baat
जवाब देंहटाएंacchi sameeksha hai mahadev badhai.
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