गुरुवार, सितंबर 24, 2009

सांप - सीढ़ी और इन्सान की ज़िन्दगी !


- उमेश पाठक
हम सभी बचपन में लूडो में सांप-सीढ़ी का खेल खेलते रहे हैं!बड़ी कोशिशों के बाद १०० (लक्ष्य) तक पहुचना और अचानक एक सांप के काटने के बाद फ़िर शून्य पर पहुच जातें हैं! इंसानी जिंदगी की भी कुछ ऐसी ही फितरत है !हमारे अच्छे-बुरे कर्म भी सांप और सीढ़ी की तरह ही हैं !अच्छे कर्म को हम सीढ़ी और बुरे कर्मों को सांप मान सकते हैं !हमरे एक-एक अच्छे कर्म हमे धीरे-धीरे अपने इक्षित लक्ष्य की और ले जाते हैं और अगर लगातार कर्म अच्छे ही रहे तो हमें अपना लक्ष्य मिल भी जाता है !इसके ठीक विपरीत हमारे बुरे कर्म हैं ! सारे अच्छे कर्म करने के बाद भी हमारी एक चूक/बुरा कर्म हमें अचानक नीचे गिरा देता है ,जैसे सांप-सीढ़ी खेल का सांप!इस लिए ये ज़रूरी है की हम अपने सद्कर्मों में सामजस्य बना कर रखें जिससे हमें बार-बार नीचे नही गिरना पड़े!इसके लिए ये भी ज़रूरी है की हम अपने अच्छे -बुरे कर्मों का ख़ुद हिसाब रखे क्योंकि अपना सही आत्म्मुल्यांकन आप ही कर सकते हैं !

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