सोमवार, अप्रैल 13, 2009

ये इन्कलाब गुज़र जाने दो !

उमेश पाठक
ये इन्कलाब गुज़र जाने दो !
चढा सैलाब उतर जाने दो!
प्यास बुझती नही मैखानों में ,
तुम अपनी यादों के पैमाने दो!
दार पर मुझको चढा दो यारो,
नाम कुछ इश्क में कर जाने दो!
उनसे मिलने की तमन्ना है जवां
लगी है आस ,मगर जाने दो !
अपने बारे में कभी सोचेंगे ,
यादे आयी है चली जाने दो!
कौन अब इश्क यहाँ करता है,
जिस्म मिलते है बस दीवाने "दो"!

3 टिप्‍पणियां: