शुक्रवार, अप्रैल 24, 2009

समेट लो,कुछ दे कर जा रहा है..गुजरता पल !


उमेश पाठक

मिनट ,घंटा ,दिन,महीने, साल गुजरते चले जाते हैं-हम चाहें या न चाहें!सुख-दुःख,अच्छा-बुरा कुछ न कुछ ज़रूर होता है बीते सालों में ,हर किसी के साथ!कभी कोई कड़वी याद हमारा मन कसैला करदेती है तो कभी सुखद दिनों की यादे अपनी बौछारों से हमें भिगो जाती हैं!हर पल हमें आगे बढ़ने के लिए कोई न कोई तरीका ज़रूर बता जाता है,हाँ कभी हम उसे समझ लेते हैं और कभी समझ ही नही पातें!
जब कभी धुप ने शिद्दत से सताया हमको ,याद एक पेड़ का साया बहुत आया हमको! ये सभी अनुभव हमें वास्तव में जीना सीखा देते हैं!जिंदगी से डर-डर के क्या होगा,कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा.वक्त की सच्चाई से रूबरू करातेहैं! कुछ फिल्मी गीत भी काफी महत्व के हैं,वक्त की कीमत और महत्व को बताते कुछ फिल्मी गीत ध्यान देने योग्य हैं-आइये एक नजर डालते हैं-

  • वक्त के सितम कम हसीं नही,आज हैं यहाँ कल कही नही वक्त हैं बड़े अगर मिल गएँ कहीं.....

  • वक्त ने किया क्या हसीं सितम,तुम रहे न तुम हम रहें न हम
  • नदिया चले ,चले रे धारा.....तुमको चलना होगा...
  • आने वाला पल जाने वाला है.....
  • समय ओ धीरे चलो ,बुझ गयी रह की छावं .....
  • ढलता सूरज धीरे-धीरे ढलता है ढल जाएगा..
  • समय से कौन लड़ा मेरे भाई ...

वक्त ने हमें निकम्मा कर दिया ग़ालिब वरना हम भी आदमी थें काम !मित्रों हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें ,वक्त को रोक नही सकतें,हाँ वक्त के साथ चलने की कोशिश ज़रूर की जा सकती है!ये कोशिश ही हमें उम्मीद की और ले जाती है!

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