बुधवार, जनवरी 28, 2009

माँ !


रात हमारी आँखों से फ़िर बही कहानी अम्मा की,
खिड़की से जब सटकर महकी रात की रानी अम्मा की!


दादा की वो गिरी हवेली ,टुटा तुलसी का चौरा ,

पिछवारे की नीम भी जाने ,उमर खपानी अम्मा की!


हम लोगो को खिला-पिला के, जब अम्मा थक जाती थी,
हमने देखी पानी पीकर, भूख छुपानी अम्मा की !


खीर ,पनीर या दाल मखानी और परांठें गोभी के ,
अदरक लहसुन के चटनी सी ,गंध सुहानी अम्मा की !


छोड़-छाड़कर चले गएँ सब किसको उसका ध्यान रहा,
बस बाबु को याद रही वो चिता जलानी अम्मा की!


दे कर अपना चेहरा-माथा अम्मा जाने कहा गयी,
हम जिंदा हैं इस दुनिया में एक निशानी अम्मा की!


रात हमारी आँखों से फ़िर बही कहानी अम्मा की,
खिड़की से जब सटकर, महकी रात की रानी अम्मा की!

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