- उमेश पाठक
आज ज़ब हम इंसान को खांचों में देखने के आदि हो चुके हैं,पूर्वाग्रह में जीते हैं, ऐसे में इंसानियत को बचाना बड़ा ही मुश्किल लगता है! हमारे मुल्क में समय-समय पर कवियों/शायरों/लेखकों ने इस बारे में लिखा है! नक्सलवाद,आतंकवाद,माओवाद और कुछ नहीं तो राजनीतिक विवाद के इस दौर में में हम खुद तो जैसे तैसे जी ले रहे हैं मगर आने वाली पीढ़ियों के सामने हम क्या मिसाले रख रहें हैं ? इस मसले पर सोचने की ज़रूरत है! नयी पीढ़ी को कुछ नहीं तो कम से कम एक ज़हर भरा समाज तो न मिले और ये कोशिश हमारे आपके परिवार से ही शुरू हो सकती है ! पेश है इसी सामयिक विषय पार जमीन से जुड़े शायर अदम गोंडवी की ग़ज़ल जिनकी मशहूर लाइने हैं- फटी धोती में नँगे पांव कोई ,जहां गुजरता हो,समाझ लेना सडक वो ही अदम के गावं जाती है !
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये,
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये !
हममें कोई हूण , कोई शक , कोई मंगोल है ,
दफ़्न है जो बात , अब उस बात को मत छेड़िये !
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं ; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर , हलाकू , जार या चंगेज़ ख़ाँ ,
मिट गये सब ,क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये!
छेड़िये इक जंग , मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़,
दोस्त , मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये !