गुरुवार, अगस्त 19, 2010

अदम गोंडवी की ग़ज़ल!


- उमेश पाठक

आज ज़ब हम इंसान को खांचों में देखने के आदि हो चुके हैं,पूर्वाग्रह में जीते हैं, ऐसे में इंसानियत को बचाना बड़ा ही मुश्किल लगता है! हमारे मुल्क में समय-समय पर कवियों/शायरों/लेखकों ने इस बारे में लिखा है! नक्सलवाद,आतंकवाद,माओवाद और कुछ नहीं तो राजनीतिक विवाद के इस दौर में में हम खुद तो जैसे तैसे जी ले रहे हैं मगर आने वाली पीढ़ियों के सामने हम क्या मिसाले रख रहें हैं ? इस मसले पर सोचने की ज़रूरत है! नयी पीढ़ी को कुछ नहीं तो कम से कम एक ज़हर भरा समाज तो न मिले और ये कोशिश हमारे आपके परिवार से ही शुरू हो सकती है ! पेश है इसी सामयिक विषय पार जमीन से जुड़े शायर अदम गोंडवी की ग़ज़ल जिनकी मशहूर लाइने हैं- फटी धोती में नँगे पांव कोई ,जहां गुजरता हो,समाझ लेना सडक वो ही अदम के गावं जाती है !


हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये,

अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये !

हममें कोई हूण , कोई शक , कोई मंगोल है ,

दफ़्न है जो बात , अब उस बात को मत छेड़िये !

ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं ; जुम्मन का घर फिर क्यों जले

ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

हैं कहाँ हिटलर , हलाकू , जार या चंगेज़ ख़ाँ ,

मिट गये सब ,क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये!

छेड़िये इक जंग , मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़,

दोस्त , मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये !


शनिवार, अगस्त 14, 2010

आज़ादी का मतलब जिम्मेदारी है !




- उमेश पाठक
आप किसी चीज के बारे में लगातार पढ़ते रहे हों, फिर भी उसे सच्चे अर्थों में तभी समझ सकते हैं, जब आप उसे अनुभव करें। मसलन, हम रोज बलात्कार, हादसों आदि के बारे में पढ़ते हैं। पर, हमें दर्द का अहसास तभी होता है जब हमारे किसी करीबी के साथ ऐसा कुछ होता है। तो आजादी की लड़ाई की कहानी किताबों में पढ़ कर और फिल्मों में देख कर बड़ी हुई यह पीढ़ी कभी इस लड़ाई की गंभीरता महसूस कर सकती है, मुझे यकीन नहीं होता। वे इसे समझें या महसूस करें, ऐसी उम्मीद पालना भी ठीक नहीं होगा

संघर्ष हमें जिम्‍मेदारी का अहसास कराता है, क्‍योंकि हम उसका महत्‍व समझ पाते हैं, जो हमारे पास है। जब मैं बच्चा था तो मुझे हर आफत से बचाया जाता था। अगर मैं गिरता तो मां-पिताजी दौड़ कर आते, मुझे उठाते, शरीर में लगी धूल झाड़ते और समझाते कि फर्श पर चींटी थी जिसने मुझे गिराया। मेरे गिरने में कभी मेरी गलतीनहीं होती थी। मुझे यह समझने में थोड़ा वक् लगा कि दरअसल मैं अपनी गलती की वजह से गिरा करता था। मैंइसलिए गिरता था, क्योंकि मैं लापरवाही करता था।‍ ‍ ‍

हम अपने दोस्तों, करीबियों और परिवार वालों के साथ भी यही करते हैं। जब कोई गलती होती है तो कुछ ऐसा कारण बताते हैं जो हमारे वश में नहीं होता। सामने वाले की गलती थी या वह लापरवाही बरत रहा था। पर सच यह है कि आप जो कुछ भी करते हैं, उसके लिए आप ही जिम्मेदार होते हैं। हम अपने बच्चे को यह बताते हुए बड़े करते हैं कि उसकी गलती नहीं है और एक दिन हम उसी से उम्मीद पाल बैठते हैं कि वह जिम्मेदारी उठाए। हम यह नहीं समझ पाते कि हमने उसे कभी जिम्‍मेदारी का अहसास कराया ही नहीं। यही कारण है कि वह इसी सोच के साथ बड़ा होता है कि वह गलत हो ही नहीं सकता।

जिम्मेदारी की शुरुआत बचपन से ही होती है। अगर हम उसे शुरू से ही गलती के लिए जिम्मेदार नहींबताएंगे तो वह कभी जिम्मेदारी लेना नहीं सीखेगा। आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह आगे चलकर अपनी सोच, व्यवहार बदल कर अचानक जिम्मेदार हो जाएगा।‍‍ ‍‍ ‍‍


जिम्मेदारी का अहसास किए बिना आजादी का कोई मतलब नहीं है। जिम्मेदारी के अहसास का मतलब यहसमझना है कि आप क्या कर सकते हैं और आपको क्या करना चाहिए। इसका मतलब यह समझना है कि आपखुद के प्रति जवाबदेह हैं। हर चीज की तरह यह भी ऐसी चीज है, जो आदमी वक् और अनुभव के साथ सीखता है।बशर्ते उसे सही रास्ता दिखाया जाए। ऐसा नहीं कि उसे पिंजड़े में रखा जाए और फिर अचानक एक दिन उड़ने केलिए कह दिया जाए। वह नहीं उड़ पाएगा और उड़ा भी तो गलत दिशा में उड़ जाएगा, क्योंकि कभी उसे इस बारे मेंआगाह किया ही नहीं गया है। सो, अगर वह जिम्मेदार नहीं है तो आजादी का मतलब नहीं समझेगा। तो जिसनेसंघर्ष नहीं किया है, उससे आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि आजादी के सही मायने समझे।‍‍ ‍‍ ‍ ‍ ‍ ‍ ‍

आजादी का मतलब है कि आप जो कर रहे हैं, उसके लिए केवल खुद को ही जिम्‍मेदार मानिए। और अगर कोई अपनी आजादी का मतलब नहीं समझता है तो उससे देश की आजादी का मतलब समझने की उम्‍मीद करना बेमानी है।

सीता रावन राम का करे विभाजन लोग,

एक ही तन में देखिये तीनो का संजोग !


जब तक हम इसे हर दिन अपनी जिंदगी की छोटी-छोटी बातों में नहीं आजमाएंगे, तब तक हर किसी को आजादीके मतलब समझाने का कोई फायदा नहीं है। हम जो काम रोज करते हैं, जो फैसले लेते हैं, उसके लिए जिम्मेदारीउठाना शुरू करें। इसकी शुरुआत अपने घर से ही करें तो यकीनन हम हर किसी को आजादी और इसके लिए लड़ीगई लड़ाई की गंभीरता का अहसास करा सकते हैं।

गुरुवार, अगस्त 05, 2010

किशोर कुमार :जिंदगी का सफ़र......

- उमेश पाठक
किशोर कुमार ! एक ऐसा कलाकार जिसे शुरू में गंभीरता से नहीं लिया गया लेकिन उस कलाकार ने बाद में सभी संगीतप्रेमियों को गंभीरता से न केवल सोचने प़र मजबूर किया ......बल्कि अपनी गंभीरता से गंभीर भी कर दिया ! बहुमुखी प्रतिभा के धनी महान कलाकार हैं-किशोर दा ! ४ अगस्त को सारा हिंदुस्तान उनके जन्मदिन प़र याद करता है लेकिन ऐसा लगता है की वो अपनी आवाज़ से कला से और अपने खास अंदाज़ से हमारे बीच आज भी मौजूद हैं ! किशोर दा के बारे में कुछ फ़िल्मी हस्तियों के विचार-

Often called a genius, he held sway over bollywod playback music for two decades and is remembered to this day for his ability "to create drama through singing". August 4th, 2009 MUMBAI - Subhash Ghai

Kumar has left behind a huge legacy of music. And he continues to inspire youngsters to be individualistic. Young female singers speak about how Kishore has influenced them and the one Kishore-song they would love to re-sing. -Sunidhi Chauhan

किशोर कुमार बेहतरीन गायक थे, शानदार अभिनेता थे, निर्माता थे, निर्देशक थे... वे वास्तव में एक ऑलराउंडर थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार की आज 81वीं जयंति है. इस अवसर पर प्रस्तुत है उनके जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें:
किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खांडवा में हुआ था।
उनकी मृत्यु 13 अक्टूबर 1987 को मुम्बई में हुई
उन्होनें चार विवाह किए थे -
रूमा गुहा (1951 से 1958: बाद में तलाक)
मधुबाला (1961 से 1969: बाद में मधुबाला की मृत्यु)
योगिता बाली (1976 से 1978: बाद में तलाक)
लीना चन्दावरकर (1980 से 1987: बाद में किशोर कुमार की मृत्यु)
उनकी पहली फिल्म आंदोलन थी (1951)
उनकी पहली हिट फिल्म नौकरी थी (1954)
उन्होने गायकी के लिए कई फिल्मफेयर अवार्ड जीते
उन्होनें लता मंगेशकर के साथ मिलकर 327 गाने गाए थे. उनसे अधिक गाने मात्र मो. रफी ने गाए थे
बॉलीवुड में इलैक्ट्रिक संगीत लाने का श्रेय उनको जाता है।
किशोर कुमार की आवाज़ कभी अमिताभ बच्चन के ही लिए बनी है ऐसा कहा जाता था. बाद में दोनों में मतभेद हो गए और किशोर कुमार ने कहा था कि वे अब कभी अमिताभ के लिए आवाज नही देंगे।
किशोर कुमार का मशहूर "योडली" प्रभाव उनके भाई अनूप कुमार के एक ऑस्ट्रेलियन रिकार्ड से लिया गया था।
उनको एल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्में बहुत पसंद थी। उनके पिता पेशे से वकील थे। उन्होनें अपने दोनों भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ एक फिल्म चलती का नाम गाड़ी में साथ काम किया था।