
-उमेश पाठक
मित्रों बदलते मौसम की तरह वक्त के साथ इन्सान की सोच भी बदलती है!हमारी सोच कही न कही से हमारे अपने व्यक्तित्व को परिलक्षित करती है !किसी शायर ने कहा है-
वक्त के साथ तो हालात भी बदलता है!
ज़हीन वो है जो ज़माने के साथ चलता है !
आज कुछ ऐसी ही पंक्तिया आप के लिए ले कर उपस्थित हूं ,जिनके अलग-अलग मायने है और अलग और अलग एहसास भी! पहली पंक्ति अमीर खुसरो की है, कुछ अपनी और कुछ परायी कविताओं का ये गुलदस्ता खास आप के लिए है !
खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार !
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूबा सो पार !
शलभ बन जलना सरल है... प्रेम की जलती शिखा पर |
स्वयं को तिल तिल जलाकर दीप बनना ही कठिन है |
दिल में उमीदें जगाओ तो सही
ख्वाब पलकों पे सजाओ तो सही!
इतना भी ऊँचा नहीं है आस्मां
तुम परों को आजमाओ तो सही !
तू बनके रौशनी चमके जहा पे घुप्प अँधेरा हो,
पुकारे हर कोई एक नाम और वो एक नाम तेरा हो...
उन दिनों
जब मैं चला करता था
जमीन इस कदर अपनी हुई थी
कि आज, जब वह नहीं है
कदमों की आदत बढ ज़ाने की
जाती नहीं है
गिरता हूँ
गिरता रहता हूँ
एहसास को लब्ज दिया नहीं जाता !
आँखे तो खुली हुईं हैं,देखा नही जाता !
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बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंbahut badiya prastuti
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
SHANDAR RACHNA
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबेमिसाल,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबेमिसाल,,,,,,,,
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