शनिवार, अगस्त 27, 2011

यादों में अमिताभ ..



अमिताभ बच्चन की चौथी वर्षगांठ एक ऐसा यादगार लम्हा है, जिसे कभी भुलाया ही नहीं जा सकता। तेजी बच्चन इस समय तक इलाहाबाद के संभ्रांत, संस्कारी व सामाजिक माहौल में अपनी अलग ही पहचान बना चुकी थीं। मुन्ना के चौथे जन्मदिवस के अवसर पर घर में एक पार्टी रखी गई थी, जिसमें शहर के कई चुनिंदा लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

पार्टी की रंगत अपने चरम पर थी तभी अचानक वहां कुछ देर के लिए खामोशी पसर गई। इस महफिल में एक खूबसूरत महिला ने अपने दो वर्ष के बेटे के साथ प्रवेश किया।

इन्हें देखते ही उपस्थित सभी मेहमान एक-दूसरे के कान में फुसफुसाने लगे.. 'यह इंदिरा जी हैं'...'फिरोज खान की पत्नी'...'प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी'...।

हमने तो इंदिरा जी को वृद्धावस्था में देखा, तब भी उनके जादुई व्यक्तित्व के पीछे पूरा देश पागल था। सोच सकते हैं कि युवावस्था में उनके चेहरे पर कितना नूर होगा।

इंदिराजी आगे आईं और तेजी से बोलीं.. 'लो मैं तुम्हारे छोटे से लाड़ले को ले आई हूं।' ऐसा कह, उन्होंने बेटे को आगे कर दिया... यह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि राजीव गांधी थे। इस तरह अमिताभ और राजीव गांधी की पहली मुलाकात हुई।

दरअसल जन्मदिवस की इस पार्टी के अवसर पर यहां फैंसी ड्रेस कॉम्प्टीशन भी आयोजित किया गया था। इसलिए सभी बच्चे अलग-अलग और रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे हुए थे। लेकिन राजीव गांधी धोती-कुर्ते में थे। घुटने से थोड़े ऊपर तक की धोती-कुर्ता और सिर पर टोपी।

जबकि अमिताभ (अमित) ने फौजियों की ड्रेस पहन रखी थी। चार वर्षीय अमित ने दो वर्षीय राजीव का प्रेमपूर्वक अभिनंदन किया। अपना दायां हाथ राजीव के बाएं हाथ में डाले हुए घूमते रहे। लेकिन कार्यक्रम के मुश्किल से आधे घंटे ही बीते होंगे कि राजीव गांधी की धोती खुल गई। राजीव इतने छोटे थे कि वे अपने कपड़े तो संभाल नहीं सकते थे। इंदिराजी ने तुरंत उनके कपड़े बदल दिए और चूड़ीदार पायजामा, खादी का कुर्ता और टोपी पहना दी। अब राजीव बिलकुल राजनेता दिखने लगे।

हम भारतीयों ने तो दशकों बाद राजीव गांधी को राजनेता की पोशाक में देखा लेकिन अमिताभ ने उन्हें 4 वर्ष की उम्र में ही इस पोशाक में देख लिया था।

दोनों के बीच गहरी मित्रता थी। एक बार अमिताभ ने राजीव से कहा भी कि तू इसी गेटअप में जंचता है। देखना एक दिन तू जरूर राजनेता बनेगा।

लेकिन उस समय राजीव को राजनेता बनना पसंद नहीं था। किशोरावस्था से ही उनकी रुचि उपकरणों और इलेक्ट्रिक चीजों में ज्यादा रही। रेडियो, टेपरिकॉर्डर, चाभी से चलने वाले खिलौने, बैटरी से उडऩे वाले विमान जैसे खिलौनों में राजीव गांधी की इतनी रुचि थी कि वे अक्सर इन्हें खोल दिया करते थे और इंजीनियर की तरह उसके पुर्जों की जांच-परख में लग जाया करते थे।

काश, विधाता ने उन्हें विमान की कॉकपिट से उठाकर प्रधानमंत्री के सिंहासन पर न बिठाया होता।

इलाहाबाद में कवि बच्चनजी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे खुद के लिए एक मकान खरीद सकते। वे अधिकतर समय किराए के मकानों में ही रहे। इसके अलावा उनकी कुंडली में स्थिरता का योग तो जैसे था ही नहीं। निश्चित समयांतर पर उन्हें कई मकान बदलने पड़े।

बैंक रोड, स्ट्रैची रोड, एडल्फी हाउस और इसके बाद क्लाइव रोड स्थित मकान... इलाहाबाद के ये तमाम पुराने मकान आज अमिताभ के चाहने वालों के लिए तीर्थधाम बन चुके हैं। लेकिन उस समय इन सभी घरों में कवि की गरीबी और तेजी के आंसू ही बसा करते थे।

अमितजी के शैशवकाल की अनेक यादें इन मकानों से जुड़ी हुई हैं...

एडल्फी हाउस की बात करें तो यहीं पर अमिताभ की मुलाकात राजीव गांधी से हुई थी और इसी घर में ही अमिताभ के छोटे भाई अजिताभ का जन्म हुआ था। इसके डेढ़-दो महीनों बाद ही भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। अमिताभ ने स्कूल जाने की शुरुआत भी यहीं से ही की।

इसी मकान से एक और कड़वी याद जुड़ी हुई है... एक बार शाम के समय कवि हरिवंशराय बच्चन घर आते ही रो पड़े.. तेजी ने उनसे पूछा कि क्या बात है... कवि ने जवाब दिया... 'महात्मा गांधी की हत्या हो गई। हम अनाथ हो गए'।

इधर, बैंक रोड स्थित मकान में जब बच्चन परिवार रहा करता था.. तब अमिताभ को एक बार बहुत तेज बुखार आया था। और उनके स्वस्थ होने के लिए कवि ने प्रतिज्ञा की थी कि उनका बेटा स्वस्थ हो जाए... वे जीवन में कभी भी शराब को हाथ तक नहीं लगाएंगे।

स्ट्रैची रोड स्थित मकान में अमिताभ की वयोवृद्ध दादी मां सुरसती का देहांत हुआ था। इसी समय अमित ने पिता बच्चन से पूछा था ... 'दादी कहां गई?'.. तो बच्चन ने कहा... 'भगवान के पास...'

हालांकि यह सस्ता जमाना था। किराए से मकान आसानी से और कहीं भी मिल जाया करते थे। लेकिन तेजी जब पिताजी के घर थीं तो उनका जीवन शानो-शौकत वाला था। इसलिए उन्हें हमेशा बड़े मकान ही पसंद आया करते थे।

40 के दशक में जब इलाहाबाद में सामान्य मकान का किराया 5 या 7 रुपए हुआ करता था, तब भी बच्चनजी 30-35 रुपए तक किराए के मकान के लिए प्रतिमाह खर्च किया करते थे। मकान को सजाने-संवारने की पूरी जिम्मेदारी तेजी की थी।

कवि तो अधिकतर समय नौकरी और कविताओं के सृजन में या कार्यक्रमों के चलते घर से बाहर ही रहा करते थे। कभी-कभी इनके रहन-सहन को देखकर मकान मालिक भी बेजा फायदा उठाने से नहीं चूकते थे। बच्चन परिवार को पता ही नहीं चलता था और मकान का किराया बढ़ जाया करता था। 30 रुपए किराया रातों-रात 50 रुपए भी हो जाया करता था। जहां तक हो सके वहां तक तेजी मकान मालिकों को सहयोग ही किया करती थीं। बहस या दादागिरी जैसे शब्द तो उनकी जिदंगी की डिक्शनरी में जैसे थे ही नहीं।

इसी तरह बैंक रोड स्थित एक मकान का वाकया है.. यहां मकान मालिक ने अचानक ही मकान का किराया 50 रुपए से बढ़ाकर 75 रुपए कर दिया। कवि इस समय घर पर नहीं थे, किसी काम से दूसरे शहर गए हुए थे। तेजी ने सोचा, यह बात उन्हें बतानी ठीक नहीं.. वे इसे लेकर ङ्क्षचतित हो उठेंगे।

तेजी ने खुद ही दूसरा मकान ढूंढऩा शुरू कर दिया और स्ट्रैची रोड स्थित एक सुंदर और बड़ा बंगला मिल गया। इसकी कीमत भी कम थी। तेजी ने रातों-रात बैंक रोड का यह मकान खाली कर दिया और समान बटोर यहां शिफ्ट हो गईं।

कवि को तो यह बात उनके वापस आने पर ही मालूम हुई। लेकिन वे तेजी की हिम्मत और सूझ-बूझ देख दंग रह गए।

... कुछ ऐसा ही ऐडल्फी हाउस में भी हुआ। इस मकान मालिक ने अचानक ही उन्हे मकान खाली करने का फरमान सुना दिया। कवि चाहते तो मकान मालिक के खिलाफ अदालत भी जा सकते थे, लेकिन वे सीधे-सादे और नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे, वे इस तरह का कोई कदम उठाने के पक्ष में नहीं थे।

अमिताभ के मन पर ये बातें गहरा प्रहार किया करती थीं। काल चक्र घूमता रहा... तकदीर ने करवट ली और अब अमिताभ के नाम का सिक्का चलने लगा था। उन्होंने इलाहाबाद जाकर इन मकानों (जहां वे रह चुके थे) की खोजबीन शुरू कर दी।

दोस्तों ने जानकारी दी... 'वह मकान तो अब जर्जर अवस्था में पहुंच गया है, देखने में भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।

दोस्तों की इस बात पर अमिताभ ने उस समय कुछ नहीं कहा, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने कई मकान खरीद लिए। मकान बेचने वाले भी अब तक यह बात जान चुके थे कि अमिताभ ये मकान क्यों खरीद रहे हैं। अमिताभ जैसे महारथी जब ये मकान खरीद रहे थे तो मकान मालिक भी उनसे क्या ज्यादा कीमत वसूलते? फिर भी अमिताभ ने बिना तोल-भाव के वे मकान खरीद लिए, जहां कभी उनकी पिता की गरीबी और मां के आंसू टपकते थे।

दोस्तों-परिचितों-सगे संबंधियों को जब यह बात मालूम हुई तो सभी ने अमिताभ से कहा कि 'तुम्हें व्यापार करना नहीं आता, अगर तुमने मोल-भाव किया होता तो यही मकान कम कीमत में भी मिल जाते..!'

इसका अमिताभ ने क्या जवाब दिया होगा...? हम अंदाजा लगाते हैं तो इसके जवाब के लिए फिल्म 'दीवार' का यह दृश्य और संवाद बिल्कुल सटीक बैठता है... फिल्म के दृश्य में एक इमारत के लिए बाजार भाव से भी अधिक कीमत चुकाने की बात पर अमिताभ और मकान मालिक के बीच संवाद होता है...

मालिक कहता है... 'आपको सौदा करना नहीं आता, अगर आपने थोड़ी भी खींचतान की होती तो यह मकान आपको सस्ते में भी मिल सकता था...!'

अमिताभ जवाब में कहते हैं... 'माफ करना, बिजनेस करना तो आपको नहीं आता ! अगर आप इस बिल्डिंग के लिए और भी कीमत मांगते तो वह भी आपको मिल जाती...!

मकान मालिक आश्चर्यचकित मुद्रा में अमिताभ से पूछता है... 'ऐसी कौन सी खास बात है इसमें...'

अमिताभ जवाब देते हैं... 'यह बिल्डिंग जब बन रही थी, तब मेरी मां ने यहां ईंटें उठाई थीं...!'

अमिताभ के इलाहाबाद के मित्र उस समय क्या जानते थे... कि जो खंडहर मकान अमिताभ ने मुंह मांगी कीमत में खरीदे... उन मकानों में कभी उनके पिता की लाचारी और मां के आंसू टपके थे....!

सीखें इंटर्नशिप के दौरान .

- उमेश पाठक
किसी भी प्रोफशनल कोर्स में इंटर्नशिप का बड़ा ही महत्व होता है! ये वो समय होता है जब हम न केवल कुछ नया सीख रहे होते हैं बल्कि आने वाले दिनों की नीव भी तैयार करते हैं ! बहुत से लोग इसे गंभीरता से न ले कर गलती कर बैठते होएँ जिसका बाद में खामियाजा भुगतना होता है ! इंटर्नशिप में कं के साथ प्रोफेशनल रिश्ते भी बनते हैं जो बाद में बड़े कारगर होते हैं,लेकिन ये सब आप की अपनी योग्यता .क्षमता और व्यवहार कुशलता पार निर्भर है !
इंटर्नशिप से क्या उम्मीदें हैं, यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए। नियोक्ता और आप दोनों को ही यह स्पष्टता होनी चाहिए। यदि यह सब कुछ लिखित रूप में हो तो और अच्छा है।

एमर्जेसी काल का लाभ उठाएं:

इंटर्नशिप की शुरूआत में जितने संभव हों सवाल पूछ डालें। यह एमजेर्ंसी काल होता है, इसका अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। क्योंकि शुरुआत में आपसे उम्मीद नहीं की जाती कि आपको सब कुछ पता होगा, लेकिन जितना जल्दी आप सीख लेंगे उतना बेहतर होगा। आपकी परफॉर्मेस रिपोर्ट इसी पर निर्भर करेगी।

परफॉर्मेस फीडबैक:

अपने सीनियर लोगों से नियमित रूप से मुलाकात करें, ताकि आप अपनी उम्मीदों पर खरे उतर सकें। अपने काम की सही फीडबैक जानने का यही सही तरीका है। इससे दूसरा लाभ यह होता है कि आप हमेशा सही रास्ते पर बने रहते हैं।

अवलोकन क्षमता बढ़िया रखें:

कर्मचारी के व्यवहार को लेकर हर संगठन की उम्मीद अलग-अलग होती है। आपके लिए बेहतर होगा कि आप कार्पाेरेट कल्चर सीखकर जल्द से जल्द अपना लें।

समय के पाबंद रहें:

ऑफिस हमेशा तय समय पर पहुंच जाएं। यदि आपको देर होने वाली है तो तत्काल फोन पर सूचित करें। बीमार पड़ें तो भी तुरंत बताएं। इसमें भी सावधानी बरतें कि जिस दिन कोई महत्वपूर्ण काम हो उस दिन तो ऑफिस में जरूर मौजूद रहें।

सहकर्मियों से अच्छे संबंध रखें:

अपने सहकर्मियों के साथ मधुर संबंध बनाकर रखें। विनम्र, सहयोगी, संवदेनशील और दोस्ताना व्यवहार से आपको संबंध बनाने में मदद मिलेगी। बातचीत कर ही सहकर्मियों को जान पाएंगे।

और काम मांगें:

ऑफिस में व्यवहार सामान्य रखें। आपको कोई जिम्मेदारी दी जाती है तो बिना शिकायत स्वीकार करें। हमेशा कोशिश करें कि समय पर काम पूरा कर दें। यदि आप अपने काम से संतुष्ट हैं तो नया काम मांगें।

रिकमंडेशन लेटर जरूर लें:

इंटर्नशिप पूरी करके जाते समय अपने सुपरवाइजर से रिकमंडेशन लेटर यानी सिफारिशी पत्र जरूर ले लें। उससे हमेशा संपर्क में भी रहें। कहीं भी नौकरी के लिए आवेदन करते वक्त रिफरेंस यानी संदर्भ के लिए उनका नंबर दे सकते हैं।

सोमवार, जून 20, 2011

On Fathers day...

मैंने देखा ,
दर्द से तड़पते बूढ़े बाप को ,
उसके आंसुओ में अपने आपको ,
क्यों झेलता है वो रिस्तो के शाप को .
इन्सान खो देता है रिस्तो में अपने आपको ,
मैंने देखा है
उसके पथराई आँखों के सपनों को ,
उसके भूले बिसरे अपनों को ,
तिनका-तिनका बिखरे अरमानो को ,
तिल तिल क्र मरते स्वाभिमानो को ,
मैंने देखा है
जो निभाते है हर रिश्ते चुपचाप ,
अपने लिए न रखते कोई हिसाब ,
फिर भी उनकी इज्जत बेलिबास ,
मैंने देखा है ,
बाप के पसीने से रिस्तो के लहू बनते है ,
उसके अरमानो तले परिवार के सपने सजते है ,
उस बाप के सपने पानी से बहते है ,
जिस सपने और खून से हम बनते है!
मैंने देखा है ,
दर्द से तड़पते बूढ़े बाप को !

(sabhar: Arvind Yogi ji)

रविवार, मई 08, 2011

Mothers Day:

Mothers are dearest thing of the world.one can talk endlessly about mothers and their protective instinct.this song from RAJA AUR RANK is depcting the natural beauty and virtue of an Indian mother that is MAA.-Umesh Pathak


रविवार, मार्च 20, 2011

djsalmanj Singer Hits - Lata Jee - Lata Jee - YEH MULAQAT EK BAHANA HAI .mp3
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Lata Mangeshkar - Agar Mujhse Mohabbat Hai .mp3
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Lata Mangeshkar - Meri Aankhon Se Koi Neend Liye .mp3
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Lata Mangeshkar - Lag Ja Gale-Woh Kaun Thi .mp3
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Lata Mangeshkar - Nainon Mein Badra Chhaye .mp3
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Teri Aankhon Ke Siva .mp3
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Gautam Das Gupta - Lo aa gayee unki yaad - Do Badan .mp3
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Lata Mangeshkar - Bada Natkhat Hai Yeh (Slow) - [rKmania.com] .mp3



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Lata Mangeshkar - Aap Kyon Roye - www.Songs.pk .mp3
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शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र :एक नज़र


गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण
हिंदुस्तान के फिल्म इतिहास में शायद ही कोई चरित्र इतना मशहूर रहा हो जितना की गब्बर का !ये कालजीवी पात्र अमर है! गबर का नाम आते ही मान में एक निष्ठुर ,भयानक छवि बन जाती है! मगर ऐसा नही है ....आइये जानते हैं गब्बर के बारे में कुछ नयी बातें कुछ और पहलू ! - उमेश पाठक



१.सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.


3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


4. अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5. हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.


6. नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


7. भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8. सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस युग में 'कौन बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर बनाने का गब्बर का यह सच्चा प्रयास था.


9. महानायकों का निर्माता: अगर गब्बर नहीं होता तो जय और व??रू जैसे लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर के व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता जागी.