सोमवार, जून 14, 2010

मुझे चाँद चाहिए :आत्मविश्वास की गाथा


-उमेश पाठक

पश्चिमी दार्शनिक हईड़ेगर ने कहा था - मनुष्य इस संसार में एक फेंकी हुयी सत्ता है कभी -कभी जिंदगी के थपेड़ों को महसूस करने के बाद उसकी ये बात सच प्रतीत होती है!कभी हम इतने मजबूर होतें हैं कि जो निर्णय नियति लेती है उसे स्वीकार करने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई चारा नहीं होता !जीवन में हर कोई बड़ा बनना चाहता है मगर बड़ा बनाना आसान तो नहीं !बड़ा बनने के लिए बड़ी सोच के साथ आत्मविश्वास का होना ज़रूरी है ! स्वाभिमान ,कठिन परिश्रम और लम्बे समय तक संघर्ष करने की दृढ ईक्षा ही अम्बिशन को पूरा करने में सहायता करती है !जब जीवन का यह सार या सूत्र समझ में जाता है तो लक्ष्य तक पहुचना आसान हो जाता है अन्यथा हम आने वाली समस्याओं में ही उलझे रहते हैं !

ऐसी ही एक आत्मविश्वासी लड़की कि संघर्ष गाथा है उपन्यास- मुझे चाँद चाहिए ! सुरेन्द्र वर्मा का यह उपन्यास बड़े कथानक का है और इसमें बहुत सारे पात्र हैं लेकिन मुख्य पात्र का संघर्ष और आत्मविश्वास प्रेरक है !कथा की मुख्य पात्र सिलबिल उर्फ़ वर्षा वशिष्ठ हमारे आस-पास कि ही लगती है और उसके सुख-दुःख अपने लगते हैं ! पूरा उपन्यास थियेटर और सिनेमा कि दुनिया पार आधारित है दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ) के बारे में इतनी विषद और व्यापक जानकारी हो जाती है कि आप यह महसूस करने लगते हैं कि मै भी इसमें पढ़ चुका/चुकी हूं !
आत्म्विशस से लबरेज कुछ पंक्तियाँ देखिये-

"...अचानक मुझमें असंभव के लिए आकांक्षा जागी। अपना यह संसार काफी असहनीय है, इसलिए मुझे चंद्रमा, या खुशी चाहिए-कुछ ऐसा, जो वस्तुतः पागलपन-सा जान पड़े। मैं असंभव का संधान कर रहा हूँ...देखो, तर्क कहाँ ले जाता है-शक्ति अपनी सर्वोच्च सीमा तक, इच्छाशक्ति अपने अंतर छोर तक ! शक्ति तब तक संपूर्ण नहीं होती, जब तक अपनी काली नियति के सामने आत्मसमर्पण न कर दिया जाये। नहीं, अब वापसी नहीं हो सकती। मुझे आगे बढ़ते ही जाना है... .."

ये उपन्यास शाहजहाँपुर की एक आम निम्नमध्य वर्गीय किशोरी सिलबिल के अपने छोटे शहर के दकियानूसी परिवेश से निकल कर दिल्ली के रंगमंच में अभिनय सीखने और फिर मुंबई के सिने जगत में एक काबिल और स्थापित अभिनेत्री बनने की संघर्ष गाथा है।अपनी पूरी जीवन यात्रा में वह भारत के उस निम्न मध्य वर्ग की लड़की का प्रतिनिधित्व करती है जो भारत के अधिकांश छोटे कस्बों के घरों में बसती है !
सिलबिल के चरित्र के कई आयाम हैं। सिलबिल अपने जीवन की नियति से दुखी है। अपने परिवेश से निकलने की छटपटाहट है उसमें। नहीं तो वो घरवालों से बिना पूछे अपना नाम यशोदा शर्मा से वर्षा वशिष्ठ क्यूँ करवाती? अपनी शिक्षिका की मदद से रंगमंच से जुड़ने वाली सिलबिल, अपने पहले मंचन में सफलता का स्वाद चख इसे ही अपनी मुक्ति का मार्ग मान लेती है और अपनी सारी शक्ति अपनी अभिनय कला को और परिपक्व और परिमार्जित करने में लगा देती है। यही किसी के भी जीवन की सफलता का मूल मन्त्र भी है !

जीवन के नए अनुभवों से गुजरने में वर्षा वशिष्ठ को कोई हिचकिचाहट नहीं, चाहे वो उसके बचपन और किशोरावस्था के परिवेश और मूल्यों से कितना अलग क्यूँ ना हो।ये नए अनुभव ही तो व्यक्ति को परिपक्वता प्रदान करतें हैं और आत्मविश्वास भी बाधा जातें हैं ! बल्कि इनका आनंद लेने की एक उत्कंठा है उसमें। पर उसके व्यक्तित्व की विशेषता ही यही है कि ये अनुभव उसे अपने अंतिम लक्ष्य से कभी नहीं डिगा पाते।जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ,मानवीय संघर्ष कि गाथा को जानने के लिए इस उपन्यास को एक बार अवश्य पढना चाहिए ! नाटक ,थियेटर और कला से जुड़े लोगों के लिए तो यह बहुत ही सहायक पुस्तक है !

शनिवार, जून 12, 2010

आइये धुम्रपान के खिलाफ आह्वान करें !

-उमेश पाठक
वर्षों पहले आयी देवानंद की फिल्म हम दोनों का एक सदाबहार गीत है-मै जिंदगी का साथ निभाता चला गया,हर फ़िक्र को धुएं में उडाता चला गया! बड़ा ही प्यारा सगीत था जयदेव का और मोहम्मद रफ़ी सधी हुयी आवाज़ ने गाने में जो मस्ती और बेफिक्री बिखेरी थी उसे आज भी महसूस किया ज़ा सकता है! इस गाने ने जहाँ एक तरफ ज़िन्दगी के गमो से बेफिक्र हो कर रहने की प्रेरणा दी ,वही गीत की दूसरी पंक्तियाँ धुम्रपान को भी बढ़ावा देती प्रतीत होती हैं !सभी जानते हैं की सिगरेट/बीड़ी सेहत के दुश्मन हैं और इनके पैकेटों पर बाकायदा वैधानिक चेतावनी भी लिखी होती है की -सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ! लेकिन ये वैसा ही है जैसे हिंदी फिल्मो में सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र ! जैसे सेंसर के बाद भी हिंदी सिनेमा कहाँ तक पहुंचा है ,आप सभी जानते हैं , वैसे ही धुम्रपान की चेतावनी भी है !
धुम्रपान से जुड़े कुछ आंकड़े :
international association for the study of lung cancer अमेरिका के जनरल सेक्रेटरी Dr Desmond Carney के अनुसार - फेफड़े के कैंसर की बीमारी का ९५ प्रतिशत कारण धुम्रपान होता है!

The National Cancer Institute, National Institutes of Health report in the 1995 Information Please Almanac states that only 30% of all cancers are caused by smoking.

"Cigarette smoking is the single most preventable cause of premature death in the world."
Men who smoke increase their risk of death from lung cancer by more than 22 times and from bronchitis and emphysema by nearly 10 times. Smoking triples the risk of dying from heart disease among middle-aged men and women.


Smoking may soon account for 20 percent of all male deaths and 5 percent of all female deaths among Indians between the ages of 30 and 69.

धुम्रपान करने वाली महिलाएं सामान्य महिलाओं की तुलना में २० % कम जीती हैं !सिगरेट की तुलना में बीड़ी थोडा कम नुकसान करती है ! विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विकासशील देशों में धुम्रपान तेजी से बढ़ रहा है और २०२० तक इससे करोड़ लोगों के मरने की संभावना है !अशिक्षितों में ये समस्या कुछ अधिक ही पाई जाती है ,वहीँ आधुनिक युवा वर्ग धुम्रपान को स्टेटस सिम्बल बना कर रोज़मर्रा की ज़रूरतों में शामिल किये हुए है !ये बीमारी वैसे तो बहुत भयानक है और हर घर लगभग इसकी ज़द में है मगर इसके भयानक परिणमों की बहुत समय तक अनदेखी नहीं की जां सकती ! इसका असर धीरे-धीरे मगर ठोस होता है जिसका प्रभाव बहुत ही खतरनाक होता है ! परिवार एक प्राथमिक इकाई है जहाँ से एक बच्चे को सही शिक्षा और मार्गदर्शन मिलता है ! घर -परिवार को धुम्रपान से मुक्त रखें ! दोस्तों , सहयोगियों से ये अपील करें तो जागरूकता बढ़ायी जा सकती है ! इसमें हमारी और आपकी भूमिका महत्वपूर्ण है ! दिल्ली सरकार ने पिछले साल सार्वजानिक स्थानों पर धुम्रपान के खिलाफ कानून बना कर इस दिशा में एक सार्थक कदम उठाया है! आइये धुम्रपान के खिलाफ आह्वान करें !




सोमवार, जून 07, 2010

दिल में उमीदें जगाओ तो सही!


-उमेश पाठक
मित्रों बदलते मौसम की तरह वक्त के साथ इन्सान की सोच भी बदलती है!हमारी सोच कही न कही से हमारे अपने व्यक्तित्व को परिलक्षित करती है !किसी शायर ने कहा है-
वक्त के साथ तो हालात भी बदलता है!
ज़हीन वो है जो ज़माने के साथ चलता है !
आज कुछ ऐसी ही पंक्तिया आप के लिए ले कर उपस्थित हूं ,जिनके अलग-अलग मायने है और अलग और अलग एहसास भी! पहली पंक्ति अमीर खुसरो की है, कुछ अपनी और कुछ परायी कविताओं का ये गुलदस्ता खास आप के लिए है !

खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार !
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूबा सो पार !

शलभ बन जलना सरल है... प्रेम की जलती शिखा पर |
स्वयं को तिल तिल जलाकर दीप बनना ही कठिन है |

दिल में उमीदें जगाओ तो सही
ख्वाब पलकों पे सजाओ तो सही!
इतना भी ऊँचा नहीं है आस्मां
तुम परों को आजमाओ तो सही !

तू बनके रौशनी चमके जहा पे घुप्प अँधेरा हो,
पुकारे हर कोई एक नाम और वो एक नाम तेरा हो...

उन दिनों
जब मैं चला करता था
जमीन इस कदर अपनी हुई थी
कि आज, जब वह नहीं है
कदमों की आदत बढ ज़ाने की
जाती नहीं है

गिरता हूँ
गिरता रहता हूँ

एहसास को लब्ज दिया नहीं जाता !
आँखे तो खुली हुईं हैं,देखा नही जाता !
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