
रात हमारी आँखों से फ़िर बही कहानी अम्मा की,
दादा की वो गिरी हवेली ,टुटा तुलसी का चौरा ,
हम लोगो को खिला-पिला के, जब अम्मा थक जाती थी,
हमने देखी पानी पीकर, भूख छुपानी अम्मा की !
खीर ,पनीर या दाल मखानी और परांठें गोभी के ,
अदरक लहसुन के चटनी सी ,गंध सुहानी अम्मा की !
छोड़-छाड़कर चले गएँ सब किसको उसका ध्यान रहा,
बस बाबु को याद रही वो चिता जलानी अम्मा की!
दे कर अपना चेहरा-माथा अम्मा जाने कहा गयी,
हम जिंदा हैं इस दुनिया में एक निशानी अम्मा की!
रात हमारी आँखों से फ़िर बही कहानी अम्मा की,
खिड़की से जब सटकर, महकी रात की रानी अम्मा की!
खिड़की से जब सटकर महकी रात की रानी अम्मा की!
दादा की वो गिरी हवेली ,टुटा तुलसी का चौरा ,
पिछवारे की नीम भी जाने ,उमर खपानी अम्मा की!
हम लोगो को खिला-पिला के, जब अम्मा थक जाती थी,
हमने देखी पानी पीकर, भूख छुपानी अम्मा की !
खीर ,पनीर या दाल मखानी और परांठें गोभी के ,
अदरक लहसुन के चटनी सी ,गंध सुहानी अम्मा की !
छोड़-छाड़कर चले गएँ सब किसको उसका ध्यान रहा,
बस बाबु को याद रही वो चिता जलानी अम्मा की!
दे कर अपना चेहरा-माथा अम्मा जाने कहा गयी,
हम जिंदा हैं इस दुनिया में एक निशानी अम्मा की!
रात हमारी आँखों से फ़िर बही कहानी अम्मा की,
खिड़की से जब सटकर, महकी रात की रानी अम्मा की!
you made me cry umesh ji...Lovely! i am speechless.
जवाब देंहटाएंwaah umesh ji lajawaab bhavuk kar diya...itni achchi kavita ke liye dhanyawaad
जवाब देंहटाएंभावुक कर दिया भाई..बहुत जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
माँ और उससे जुड़े बहुत ही मार्मिक और दिल से जुड़े लमहों को समेटा है आपने इस रचना में .... सीधे दिल में जाती है .... सफल लेखन ...
जवाब देंहटाएंbahut kuch yaad dila diya aapne..
जवाब देंहटाएं'माँ'
रास्तो की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास
जब भी
मै कभी हुई उदास
न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जजबात
करवाया
हर पल अपना अहसास
और
याद हर वो बात दिलाई
जब
मुझे दी थी घर से विदाई
तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानो मे सन्गीत बनकर
जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर
दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा
तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा
पर
तरस गई हूँ
तेरी
उँगलिओ के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालो मे
तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालो पे
वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नही पहचाना मैने इतने सालो मे
वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास
मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर
आज कोई नही पूछता ऐसे
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे..
Gandh suhanee amma kee!
जवाब देंहटाएंKya baat hai!
Bhavpoorn!
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जवाब देंहटाएंis tarah mere gunaho ko wo dho deti hai...
जवाब देंहटाएंmaa bahut gusse me hoti hai to ro det i hai...
am speechless sir...
yhi to panktiya yaad aa gai is kavita ko padhne ke baad.....
sir mujhe yeh aapki best poem lagti hai
जवाब देंहटाएंSir u r amazing...no words for ur creativity...luvd it..
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