रविवार, अप्रैल 04, 2010

दर्दों का एक जखीरा सैलाब बन गया !


(हर इंसान के दिल में कुछ कुछ अनुभूतियाँ होती हैं और वह उसे किसी किसी रूप में व्यक्त करने की कोशिश करता है ......लीजिये एक ईमानदार कोशिश ,आपके सामने प्रस्तुत है ) - उमेश पाठक

दर्दों का एक जखीरा सैलाब बन गया !
जी लेंगे,खुश रहेंगे बस खाब बन गया!
दुशवारियां यू बढ़ गयीं हयात की मेरी,
बादल जो था ख़ुशी का वो आब बन गया !
होटों पे हंसी मेरे ,पलकों में छुपे आंसू
ये दर्द भी अब देखो नायाब बन गया !
गमगीं कोई हो ,मुझसे ये हो न पाया यारों ,
खुद दर्द मेरे ज़ख्म का ज़वाब बन गया !
कुछ जोड़ना घटाना ,फितरत नही थी मेरी,
घाटे में जिंदगी का हिसाब बन गया !

2 टिप्‍पणियां: