

-उमेश पाठक
चेहरे से बयां हो जाता है,अफसाना जो न दिखता है,
कोई ग़मगी हो चुप रहता है ,कोई दर्द की गजलें लिखता है,
कही कोई आहें भरता है ,कही कोई गुमसुम रोता है,
कोई दर्द जो दिल में होता है, कोई दर्द जो दिल में होता है!
भूली बिसरी सी चाहो में ,जेहन की पुरानी राहों में,
उखड़ी-उखड़ी सी सांसों में ,कुछ भूले हुए एहसासों में ,
दामन अश्कों से भिगोता है,कोई दर्द जो दिल में होता है !
दिल के अपने जज्बातों से, माजी की पुरानी रातों से ,
अरसे पहले जो गुजर चुकीं ,धुंधली सी उन मुलाकातों से,
खाबों में तासुब्बुर में ही सही,कोई मिल के गले तब रोता है!
कोई दर्द जो दिल में होता है, कोई दर्द जो दिल में होता है!