नये साल का आगाज हो चुका है इसके साथ ही नयी चुनौतियां भी हैं इस नये साल में देश के सामने भी और पूरे विश्व के सामने भी। साल दो हजार नौ मे जहां मंदी की मार हर तरफ दिखायी पड़ी वहीं विश्व की सबसे मजबूत समझी जाने वाली अमेरिकी और जापानी अर्थव्यवस्था धरासायी होती दिखी। बड़े-बड़े बहुराष्ट्रीय बैक डूब गये।साल के अन्त में दुबई की रियल स्टेट कंपनी अल खलील के दिवालिया होने से भी लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी।मंदी की मार यूरोप से लेकर अमेरिका और एशिया तक दिखी। बैंक दिवालिया हुये कंपनियां डूबी और लाखों लोगों की नौकरी भी चली गयी।लेकिन एशिया की दो मजबूत आर्थव्यवस्थाओं भारत और चीन नें इस मंदी का ना केवल सामना किया बल्कि पूरे विश्व को मंदी से लड़ने की ताकत भी दी।मंदी की मार से क्या विश्व उबर पायेगा इस नये साल में। साल दो हजार दस मे दस का दम क्या मंदी की छाया से पूरी दुनिया को मुक्त कर देगा ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आज पूरी दुनिया का हर अर्थशास्त्री ठूंठ रहा है।मंदी के बादल छंटने लगें है इस बात पर अभी भी वो पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पा रहें हैं।आज भी जापान और अमेरिका मंदी से कराह रहें है। हालात कुछ अच्छें हैं तो वो चीन और भारत की बदौलत जहां की लगभग ढाई अरब की जनसंख्या वस्तुओं के उपभोग की इतनी आवश्यकता पैदा करते है जो किसी भी मंदी का डटकर सामना कर सकते हैं।आज विश्व में सबसे ज्यादा उपभोक्ता यहां निवास करते हैं।लिहाजा मंदी के बाद भी विकास की संभावनायें मौजूद हैं और जो उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को भी बनाये हुये है।यहां के शेयर बाजार रोज नईं उंचाईया छू रहें हैं। शेयर बाजार के कुलांचे ने लोगों के चेहरे पर जहां मुस्कराहट वापस लौटाई है। वहीं सोने और चांदी की रोज तेज होती चमक ने इनको आम आदमी से दूर कर दिया।बाजार में इस तेजी के बाद के बाद भी ,इस तेजी भर भरोशा नहीं किया जा सकता। बाजार की यह तेजी मृग मरीचिका की तरह आकर्षित करती दिखायी पड़ती है। जिसकी हकीकत शायद कुछ और है क्योंकि शेयर बाजार की यह चमक बाजार की उठा-पटक में अक्सर आम आदमी को लूटती दिखायी पड़ती है, बाजार की तेजी में वो स्थिरता अभी नहीं आ पायी है जिससे आम आदमी का भरोसा बाजार पर फिर से बन सके।तमाम संभावनाओं और आशंकाओं के बीच मंदी के इस दौर में भी देश के आम आदमी का निवाला जहां मंहगा हो गया वही नये साल के स्वागत में मुबंई में लोगों ने एक सौ साठ करोड़ की शराब पैमानों में डालकर अपने गले को तर कर डाला।राजधानी दिल्ली मे भी जाम के शौकीनों ने लगभग सौ करोड़ रूपये अपने इस शौक पर नये साल के जश्न पर बहा दिये।फिलहाल इन सब के बाद भी देश का बैंकिंग सेक्टर मजबूती से खड़ा है वहीं रियल स्टेट भी धीरे-धीरे ही सही एक बार फिर से अपने पैर पर मजबूती से खडा़ होने का प्रयास कर रहा है।उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ रही है।आटोमोबाइल सेक्टर भी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ने लगा है. देश में छोटी बजट कार से लेकर मंहगी गाड़ियों के शौकीनों मे तेजी से बृद्धि हुयी है। साल के अन्त में सस्ती से लेकर मंहगी कारो तक की बिक्री में रिकार्ड बढ़ोत्तरी देखने को मिली।टाटा की नैनो से लेकर लैण्ड रोवर तक को लोगों ने खासा पसंद किया जब सारा विश्व मंदी से डूबा था भारत में मर्सडी़ज से लेकर फोर्ड टोयटा आडी सहित इस क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने सस्ते से लेकर मंहगी कारों के नये माडलों को बाजार मे उतारा जो अपनेआप भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था की कहानी कहता है।मंदी और बाजार की मजबूती के बीच में आम आदमी पिसता ही रहा है।ये बात अलग है कि विदर्भ का गरीब किसान हो या उत्तर प्रदेश के वुन्देलखण्ड का।उस पर मंदी के आने और जाने कोई असर नहीं
पड़ा। वो मंदी के पहले भी आत्महत्या कर रहा था और आज भी कर रहा है। देश को मंदी से बचाने के लिये सरकार ने बाजार में जहां करोड़ रूपये डाले और तरह-तरह के राहत पैकेज दिये लेकिन वहां के किसानों को पहले की तरह आज भी मिल रहा है मौत का पैकेज गरीबी का पैकेज आंसुओं का पैकेज भूखे पेट का पैकेज ओर झूठे आश्वासनों का पैकेज।फिलहाल आशा और विश्वास पर दुनिया कायम है ।हम उम्मीद कर सकते है इस नये साल में दस का दम हर तरफ दिखेगा। खास की जगह आम आदमी का जीवन हो या अर्थव्यवस्था हर तरफ तेजी का रूख देखने को मिलेगा।इस नये साल में शायद सरकार के साथ-साथ समाज और उद्धोगपति भी देश के किसानों के दुख दर्द को साझा कर सकेंगें।उम्मीद की इस लौ को जलाये रखे यह साल तो शायद देश से लेकर परदेश के लिये भी अच्छा होगा।हमारा बजाज के नारे के साथ स्कूटर को छोड़ कर मोटर साइकिल और कार की सवारी कर रहे इस मुल्क के लोगों की भी यही उम्मीदे है।
- विनीत त्रिपाठी,टी.वी.पत्रकार
अच्छा आलेख,धन्यवाद.
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