सोमवार, मार्च 23, 2009

रिश्ते !


कभी मन ख़ुद ही खिचता है,
अनायास ही किसी की ओर,
दर्दों में डूबा अकेला एहसास ,
अपने भी जब दूर होने लगें
कभी गैर क्यों लगने लगते है खास
अनचाहा सा एक बोझ, एक त्रासदी ,
बिताई है ऐसे ही कितनी सदी ,
मगर फ़िर भी बंधन हैं,जकड़े हुए ,
मज़बूत तो नही, मगर पकड़े हुए
चाह कर भी उन्हें, तोड़ सकते नही ,
सागर साहिल ,छोड़ सकतें नही
क्योंकि उनमें एक रिश्ता है......
अजीब होते हैं ये रिश्ते भी........
अजीब होते हैं ये रिश्ते भी......!


(रिश्तों के सन्दर्भ में व्यक्तिगत अनुभव की शाब्दिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप इस रचना का जन्म हो सका है,रिश्ते व्यक्तिगत अनुभवों से समझे जा सकते है -उमेश पाठक )

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