
भारत में पत्रकारिता की शुरुआत कलकत्ता (आज के कोलकाता )में १७८० में हुई थी! एक अहिन्दी भाषी प्रान्त होने के बाद भी हिन्दी पत्रकारिता को शुरू करने का श्रेय कलकत्ता को जाता है!"जेम्स अगस्टस हिक्की " के बाद पंडित युगुल किशोर शुक्ल ने १८२६ में "उदन्त मार्तंड "से हिन्दुस्तान में हिन्दी का पहला अखबार निकाला!आज देश में हिन्दी के दर्जनों बड़े अखबार है जिनकी प्रसार संख्या अंग्रेजी के बड़े अखबारों के बराबर या उनसे कुछ ही कम है!अगर टी वी चैनलों की और रुख करें तो अंग्रेजी के कुल चैनलों को उँगलियों पर गिना जा सकता है! http://www.livemint.com/ के अनुसार अभी देश में कुल ६२२ चॅनल हैं ,२००९ के अंत ताकि इनकी संख्या ७०० के पार हो जायेगी। वर्तमान में कुल हिन्दी चैनल की संख्या ७२ है जिनमे न्यूज़ ,मनोरंजन और इन्फोटेनमेंट के चैनल शामिल हैं!हिन्दी के प्रमुख न्यूज़ चैनलों में- आज तक,जी न्यूज़,आई बी एन सेवेन, डी डी न्यूज़,इंडिया टीवी ,लाइव इंडिया, एन डी टीवी इंडिया,न्यूज़ २४,सहारा समय,प्रेस टीवी, स्टार न्यूज़,लोक सभा,डी डी राज्यसभा,आजाद न्यूज़,जैन टीवी ,इंडिया न्यूज़,पी सेवेन,एस वन और वौइस् ऑफ़ इंडिया कुल २४ चैनल हैं जबकि अंग्रेज़ी के कुल ८ चैनल हैं-NDTV ,,CNN IBNTimes NowHeadlines TodayBBC WorldNews 9 CNN ! वर्तमान में मीडिया में काम करने के लिए हिन्दी और अग्रेजी दोनों ही भाषाओँ का ज्ञान ज़रूरी है!यह समय बयिलिन्गुअल (दो भाषाओँ के जानकार ) लोगों का है!अगर आप बहुभाषीय हैं तो कहना हीक्या !
टेक्नालाजी में विकास के साथ मुद्रण माध्यम ने भी नए परिवर्तन और चुनौतियों को स्वीकार किया है ।? सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय प्रेस के तेजी से विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।? आज भारतीय समाचारपत्रों ने ये साबित कर दिया है कि वे वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और अपने पाठकों की संख्या में वृद्धि कर सकते हैं ।? खासतौर से साक्षरता और शिक्षा के प्रसार के साथ क्षेत्रीय भाषाओं के समाचारपत्रों की संख्या में बढ़ोतरी इसके पाठकों की बढ़ती संख्या को दर्शाती है भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक कार्यालय के अनुसार 2004‑2005 के दौरान देश में प्रकाशित दैनिकों की संख्या 1834 थी ,जिनमे हिन्दी भाषा के दैनिकों की संख्या 799 थी और अंग्रेजी के 181 दैनिक शामिल थें!ऍफ़ एम् रेडियो भी सारे देश में हिन्दी में ही अपना प्रसार कर रहें हैं!
देश की राजधानी दिल्ली में मीडिया के सर्वाधिक संस्थान हैं! दिल्ली देश की मीडिया की बड़ी मण्डी भी है! हाल ही में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए मशहूर गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय ने पत्रकारिता स्नातक (बी.जे. .एम्. सी. )के परिवर्तित पाठ्यक्रम में हिंदी की घोर उपेक्षा की है,जबकि पिछले साल इसी पाठक्रम में हिंदी माध्यम से परीक्षा देने का सर्कुलर भी विश्वविद्यालय ने जारी किया था!यह अपने आप में अंतर्विरोधी है!राजधानी में अधिकांशतः विद्यार्थियों की स्थिति हिन्दी में अच्छी नही होती! मगर इस समस्या को हल करने के बजाय पाठ्यक्रम से हिन्दी को ही निकाल देना उचित नही प्रतीत होता !पहले पाठ्यक्रम का अंग होने के कारन विद्यार्थी कुछ तो पढ़ते थें ! खैर अगर नए पाठ्यक्रम निर्माता यह मानते है की अब मीडिया में हिंदी की आवश्यकता ही नही नही तो जरा हिन्दी मीडिया संस्थानों की संख्या और आंकडो पर भी एक नज़र ज़रूर डाल लें!जिस देश के सर्वाधिक मीडिया संसथान हिन्दी में हो वहा पत्रकारिता की पढ़ाई में हिन्दी की उपेक्षा नही होनी चाहिए ! दिल्ली विश्वविद्यालय में जहा अंग्रेज़ी और हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई होती है,वहीं गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में ३ साल के स्नातक कोर्स में मीडिया के सभी पक्ष (पब्लिक रिलेशन,रिपोर्टिंग, एडिटिंग, साइबर ,इवेंट मैनेजमेंट ,रेडियो, टीवी पत्रकारिता आदि ) शामिल हैं! इस लिहाज से भी हिन्दी के पेपर को हटाना तर्कसंगत नही मालूम होता है!