
-उमेश पाठक
कछुए वाली खोल जिन्दगी,
गले पड़ी सी ढोल जिंदगी !
रोजी -रोटी के सवाल पर,
पढ़ती है भूगोल जिन्दगी
ऊपर से हसती -मुस्काती ,
भीतर पोलमपोल जिन्दगी !
ख़ुद से भी बातें करने में ,
करती टाल-मटोल जिन्दगी !
न जाने कब बीच सफ़र में ,
करे बिस्तरा गोल जिन्दगी !
कछुए वाली खोल जिन्दगी,
गले पड़ी सी ढोल जिंदगी !
गले पड़ी सी ढोल जिंदगी !