सोमवार, मार्च 30, 2009

बाबूजी के न रहने पर.....


थका हारा इन्सान जब तपती धूप में थक कर किसी घने बरगद की छावं में विश्राम करता है,ऐसे में जो अनुभव होता है वैसा ही पिता के साए का भी अनुभव होता है!सचमुच कितना सुकून मिलता है जब तक सर पर पिता का साया होता हैआज इसे मै बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं !दर्द आंखों में रुक जाए तो वो शक्ति बन जाता है! ऐसे वक्त में ही हमें आंसुओं की कीमत मालूम होती है !थोड़े शब्दों में ही बहुत कुछ कह देने की बाबूजी की बातें अब समझ में आ रही है!बाबूजी की अंत्येष्टि में लोगों की भीड़ देख कर उनकी एक सीख बार-बार याद आ रही थी- "ज़िन्दगी में पैसा थोड़ा कम ही कमाना ,मगर कुछ आदमी ज़रूर कमाना."

(२४.०३.२००९,मंगलवार को बाबूजी के न रहने पर... - उमेश पाठक )

सोमवार, मार्च 23, 2009

रिश्ते !


कभी मन ख़ुद ही खिचता है,
अनायास ही किसी की ओर,
दर्दों में डूबा अकेला एहसास ,
अपने भी जब दूर होने लगें
कभी गैर क्यों लगने लगते है खास
अनचाहा सा एक बोझ, एक त्रासदी ,
बिताई है ऐसे ही कितनी सदी ,
मगर फ़िर भी बंधन हैं,जकड़े हुए ,
मज़बूत तो नही, मगर पकड़े हुए
चाह कर भी उन्हें, तोड़ सकते नही ,
सागर साहिल ,छोड़ सकतें नही
क्योंकि उनमें एक रिश्ता है......
अजीब होते हैं ये रिश्ते भी........
अजीब होते हैं ये रिश्ते भी......!


(रिश्तों के सन्दर्भ में व्यक्तिगत अनुभव की शाब्दिक अभिव्यक्ति के परिणामस्वरूप इस रचना का जन्म हो सका है,रिश्ते व्यक्तिगत अनुभवों से समझे जा सकते है -उमेश पाठक )

सोमवार, मार्च 09, 2009

होली की शुभकामनाएं!

अपनी बात के समस्त पाठकों को होली की शुभकामनाएं!

ज़िन्दगी सभी रंगों से मिलकर बनी है,जिसमे दुःख-सुख,भला-बुरा सभी शामिल है!हमें ज़िन्दगी को उसके इसी वास्तविक रूप के साथ स्वीकार करना है,इसीमे ज़िन्दगी की सार्थकता एवं सफलता निहित है!